निरक्षर कवि|| गौतम पात्र ||कविता-शय्या ||
शय्या
शय्या
हमारे दिनचर्य की गतिविधियों से कलेवर में जब शिथिलता आने लगती है,
दर्द से कराह रही अंगो की सुचना लेकर जब थकान आखो तक पहुँचती है ,
निद्रा की रसायन से हमें घोर विश्राम का आगमन जब पलके बार बार देने लगती है ,
थक हार कर जब बुद्धि भी उन सबकी बातें स्वीकार करने लगती है ,
कलेवर जब कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होता ,
ऐसी परिस्तिथि में शय्या ही इस गंभीर थकान का उपचार करती है
जब हर एक अंग मानो बेजान होकर शय्या की शरण में लेट जाता है ,
मुलायम गद्दा जब हर एक अंग का दर्द मानो खींच लेता है ,
निद्रा अवस्था में तकिया भी मानो सर की मालिश करता है ,
जब ठंडी हवाएं मानो लोरियाँ सुनाकर थकान पे मरहम लगाती है ,
कमरे में मौजूद अँधेरा भी जब नींद का आश्वासन देता है ,
न जाने किस प्रकार ये सब करती है ,
कलेवर जब कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होता , ऐसी परिस्तिथि में शय्या ही इस गंभीर थकान का उपचार करती है
निद्रा में लीन होते हुए भी जब शय्या की गोदी में बार बार उलट पलट ये काया होती है ,
तब भी शय्या अपनी पूरी क्षमता के साथ नींद की अवस्था में रखती है ,
आँखें जब निद्रा की अवस्था में अलग अलग मनोरंजक स्वपन लाती है ,
मानो इस प्रकार वो अच्छा महसूस कराती है और निद्रा में रहने को कहती है ,
शय्या की खूबी सिर्फ शय्या के पास ही मिलती है ,
शय्या ही जाने की वो कैसे सफलतापुर्वक ये व्यवहार करती है ,
कलेवर जब कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होता , ऐसी परिस्तिथि में शय्या ही इस गंभीर थकान का उपचार करती है
-गौतम पात्र
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